दोस्तों जैसा की हम सभी जानते है की जो जितना काबिल होता है, उसकी वैल्यू हमेशा उतनी ही ज्यादा होती है| जैसे अगर आप एक Student है तो आपके क्लास में सबसे ज्यादा वैल्यू उसकी होगी जो टॉपर होगा,अगर आप एक एम्प्लोयी है तो आपके काबिल सहकर्मी की वैल्यू आपसे ज्यादा होगी,ऐसे ही हर इंसान की वैल्यू उसके काबिलियत पर ही Depend होती है|
दोस्तों आज हम क़ाबलियत पर एक सुन्दर सी Poem लेकर आये है जिसका शीर्षक है “काबिलियत नाव में नहीं, माझी में होती है ”
कला साज़ में नहीं, उसके साज़ी में होती है।
अदा नमाज़ में नहीं, नमाज़ी में होती है,
लहरों से बेपरवाह अपनी दिशा को चलना,
काबिलियत नाव में नहीं, माझी में होती है।
बहुत है यहां खुदा को चाहने वाले पर असल,
बन्दगी रज़ा में रहने वाले राज़ी में होती है।
जहां हक, यकीन हो वहीं समझाना मुनासिब,
बेअदबी सदा नाजायज़ दख्ल-अंदाज़ी में होती है।
लकीर के फ़कीर कुछ नया नहीं सोच पाते,
सीखने की तेज़ तलब एतराज़ी में होती है।
सुर-ताल में आवाज़ को तराशना आसान नहीं,
संगीत की समझ पक्के रियाज़ी में हहर काम को आखिरी
पलों पे ना छोसंजीदा गल्ती अक्सर जल्द-बाज़ी में होती है।
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